खबर लाईव ब्यूरो राजेश धनगर (धरती पुत्र किसान)
मंदसौर — देश में काले सोने यानी अफीम की खेती के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश और राजस्थान मे मालवा से लेकर मेवाड़ तक के मंदसौर- नीमच- प्रतापगढ़ ओर चित्तौड़गढ़ जिले में इन दिनों खेतों में लहलहा रही अफीम की फसल पर सफेद फूल आना शुरू हो गया है। अक्टूबर-नवम्बर माह में बोयी जाने वाली इस फसल की करीब पांच महिने तक काश्तकारों को विशेष रुप से देखभाल करनी पड़ती है, जबकि डोडे आने के बाद से तो काश्तकारों को रतजगा भी कर फसल की देखभाल करनी पड़ती है।
खेतों में इन दिनों सफेद फूल ही फूल दिखने लगे है। यह सफेद फूल अफीम के है जहां पर खेतों में उगाए गए अफीम के पौधों पर यह फूल निकल आए है। अभी फूल निकले है। अब कुछ दिन बाद फूलों पर पर डोडे बनने लगेंगे जिसके बाद यह फसल तैयार हो सकेगी। काला सोना कही जाने वाली अफीम फसल को किसान काफी मेहनत से सहेज कर रखते है। किसानों का कहना है कि फूल के डोडा बनते ही लुनाई-चिराई की तैयारी प्रारंभ कर दी जाएगी।
पट्टे मिलने पर ही होती है खेती
अफीम की खेती हर कोई किसान नहीं कर सकता है। अफीम को खेत में उगाने से पहले कानूनी प्रक्रिया पूरी करनी होती है। जिसमें नारकोटिक्स विभाग से लेकर प्रशासन तक की अनुमति लेनी होती है। इसके बाद खेत की नाप के आधार पर किसानों को पट्टे वितरित किए जाते है। उसी तय स्थान पर किसान खेती कर सकता है।
ऐसे होती है खेती
खेत में अफीम बोने के दो से ढाई महीने बाद फूल आ जाते है। यह फूल एक महीने बाद डोडे बन जाते है। जिस पर किसान आने वाले कुछ दिनों में विधि विधान से मां काली की पूजा-अर्चना कर किसान डोडो में नुक्के कि सहायता से चीरे लगाते है। चिरे लगाने से तरल पदार्थ के रूप में निकली अफीम डोडे पर जम जाती है। डोडे पर जमा अफीम को चीरा लगाने व अफीम लेने के काम में परिवार जन व रिश्तेदारों के साथ साथ दिहाड़ी मजदूरों का भी सहारा लिया जाता है।
रातजग करने में लगे किसान
किसान इन दिनों अफीम के खेत में रातजगा कर रहे हैं। यह किसी मन्नत या शौक के लिए नहीं बल्कि इस फसल की जंगली जानवरों से रखवाली के लिए कर रहे हैं। सर्द रातों में किसान इस बहुमूल्य फसल को बचाने में लगे हुए हैं। जिससे उनके द्वारा पसीना बहाकर की गई मेहनत का अच्छा फल मिल सके। किसान अपने खेतों के चारों और फसल को बचाने के लिए तारबंदी भी कर रहे हैं।
मौसम की मार से चिंतित किसान
एक सप्ताह से अधिक समय से मौसम बिगड़ा हुआ है सुर्य की किरणें तक फसल को नसीब नहीं हुई है जिससे फसल में काली मस्सी, सफेद मस्सी, खांखरिया रोग, तना सडऩ एवं पत्ते में पीलापन आने से किसानों की चिंता कुछ बढ़ी हुई है। किसानों ने बताया कि मौसम के उतार-चढ़ाव के चलते फसल को रोग से बचाने के लिए विभिन्न प्रकार की कीटनाशक दवाईयों का छिडक़ाव किया जा रहा है।
नीलगाय नष्ट कर रही फसल
पटाखे फोडकऱ भगा रहे नील गायों को
रात के समय झुंड के रूप में नीलगाय खेतों में घुस जाती है और अफीम की फसल चट कर मदमस्त होकर फसल को रौंदकर चली जाती है। ऐसे में किसान टेप रिकॉर्डर की आवाज तेज कर और पटाखे छोड़ कर नील गायों व पक्षियों से इस बहुमूल्य फसल को बचाने का जतन कर रहे हैं।